Babulal dahiya
पहले हर पेड़ पौधा और बनस्पति जिन्हें अब किसान अपने खेतों में उगाता हैं वे सभी नैसर्गिक ढंग से ही अपने-अपने प्राकृतिक गुणों के अनुसार जंगलों पहाड़ों मैदानों अथबा कुछ झील झरनों के आस पास उगते रहे होंगे। शुरू-शुरू में आदिम मनुष्य का उनका उसी तरह से नाता रहा होगा जिस प्रकार पशु पक्षी फलों को खाते हैं और अंजाने ही बीजों को इधर उधर बिखेर कर वहीं गिरा देते हैं । कुछ पशु तो अपने मल द्वारा उन बीजों को दूर-दूर तक फैलाने का काम करते हैं
कुछ फल बेल सीताफल, तेंदू आंवला आदि जैसे भी होते हैं जिसे खाने के पहले उनके दाने निकाल बाहर फेंक दिया जाता है। परन्तु अमरूद टमाटर आदि कुछ फलों को निगल कर भी उनके बीज को मनुष्य फैलाता रहा होगा।परन्तु जब मनुष्य के दो अदद फुर्सत के हाथ और एक अदद विलक्षण बुद्धि ने तरह – तरह के अनुभव और अनुसन्धान किया। साथ ही अनेक वनस्पतियों को उसने किसी को अनाज और किसी को फलों के रूप में चिन्हित एवं वर्गीकरण करके अपने खेतों में उगाने लगा तो उनकी समीपता मनुष्य के साथ बढ़ने लगी।
इस तरह मनुष्य द्वारा बिगत 10 हजार वर्षो से उगाए जाने के कारण बहुत सी वनस्पतियां मनुष्य अवलम्बित ही होती गईं और धीरे- धीरे उनके नैसर्गिक ढंग से उगने के गुण का ह्रास भी होता गया। उनमें कुछ बीज तो ऐसे हैं जो आज भी नैसर्गिक ढंग से जंगल पहाडों में उग सकते हैं पर बहुतों ने अपना यह समस्त गुण समाप्त कर लिया है और वे पूरी तरह मनुष्य आश्रित ही हो गए हैं।
पर मजे की बात यह है कि इन मनुष्य आश्रित वनस्पतियों की जंगल पहाडों झील झरनों के समीप अब उनकी वे पुरखिनें य पुरखे नही हैं जो कुछ हैं वे मनुष्य के पास ही बचें हैंन। इसलिए बहुत सारी वनस्पतियों की जातियों प्रजातियों के बीजों का सम्बंध अब मनुष्य के साथ उसी प्रकार जुड़ गया है जैसे गाय,घोड़ा, भेड़, बकरी आदि की भी पुरखिनें अब जंगल में नही हैं। वे भी जो हैं वे मनुष्य के पाश ही।और अगर वह मनुष्य के पास से समाप्त हुई तो हमेशा-हमेशा केलिए धरती से समाप्त हो जाँय गी।
ऐसे तमाम बीजों की खासी एक फेहरिस्त बनाई जा सकती है जो अब पूरी तरह मनुष्य अबलम्बित हैं। उदाहरण केलिए–
1– धान
- प्रथम वह जंगली ( पसही) किस्म की धान जो नैसर्गिक ढंग से हर वर्ष खेतों पोखरों में उग कर अपना वंश परिवर्धन करती रहती है।
- दूसरी अन्य धान की हजारों परम्परगत किस्में जो मनुष्य अबलम्बित हैं। और मनुष्य अगर इनके बीज को न उगाए तो समाप्त हो जांयगी।
2 — कोदो (मोटा अनाज)
- जंगली किस्म का कोदो ( कोदइला) जो नैसर्गिक ढंग से उगकर हर वर्ष अपना वंश परिवर्धन करता रहता है।
- किसानों के खेतों में किसानों द्वारा उगाया जाने वाला कोदो–
इसकी तीन प्रजातियां हैं जो किसानों पर अबलम्बित हैं। अगर किसान न उगाए तो पूर्णतः विलुप्त।
3–तिल
- जंगली तिल(कठतिला) नैसर्गिक ढंग से खेतों में उगता है।
- देसी तिल जिसकी 4 प्रजातियां हैं पर वह सभी किसान पर अबलम्बित हैं। किसान न उगाए तो बीज समाप्त।
4–मटरा य बटरा
- जंगली मटरा जो नैसर्गिक ढंग से खेतों में हर वर्ष अपने आप उगता है।
- देसी मटरा की तीन किस्में जो मनुष्य अबलम्बित हैं। मनुष्य न उगाए तो बीज ही समाप्त।
5– मूंग
- जंगली मूंग जो हर वर्ष नैसर्गिक ढंग से उग कर अपना वंश परिवर्धन करती है।
- किसानों द्वारा उगाई जाने वाली तीन चार किस्में।
बाकी समस्त अनाज– गेहूँ, चना, जौ, उड़द मसूर, कुटकी, सांवा, काकुन, ज्वार, बाजरा,मक्का, रागी अलसी आदि मनुष्य अबलम्बित हैं। अगर इन्हें मनुष्य उगाए गा तो होंगे नही तो हजारों वर्षों से उगते-उगते यहां के जलवायु के साथ ताल मेंल बना अपने गुणसूत्रों में जो भी गुण सजोया है उसे समेट हमेशा-हमेशा केलिए विलुप्त हो जाँय गे।