नैसर्गिक बनाम कृत्तिम

Babulal dahiya

धरती में तरह तरह के जीव जन्तु वनस्पतियां हैं।वह सभी प्रकृति के नियम में बंधे हैं इसीलिए उनके सभी के यदि सहयोगी हैं तो कुछ नियंत्रक भी। सहयोगी उनके फल या गूदे को खाकर बीज को दूर -दूर तक फैलाने का काम करते हैं और नियंत्रक तने, कच्चे फलों, फूलों को खा कुतर कर बीज बनने के पहले ही नष्ट कर देते हैं। इसमें कुदरत का शायद यह उद्देश्य होगा कि किसी एक ही वनस्पति का इतना अधिक बिस्तार न हो कि दूसरी केलिए घातक बनजाय ?

यह कुदरती कार्य अभी से नही अनादि काल से ही चल रहा है। लेकिन जिस प्रकार हर क्षेत्र में अब मनुष्य की दखलंदाजी बढ़ती जा रही है वह कुदरत के लिए बहुत घातक है। क्योकि उसका यह धतकर्म ब्यापार य धन लिप्सा के लिए है और इसका दुखद पहलू होता है अन्य किस्म की समस्त प्रजातियों में रोक लगा अपने द्वरा बनाई गयी किसी एक कृत्तिम किस्म को ही प्रयोजित करना ।

जब सब कुछ धन ही बन जाता है तो उस प्रयोजित पौधे में लगे फलों का उद्देश्य भी जीव जंतुओं का भोजन य वंश सम्बर्धन नही बल्कि मनुष्य के ब्यापार का हिस्सा ही हो जाता है। फल स्वरूप इस खेती में नीदा नाशक कीट नाशक आदि का भरपूर उपयोग होता है और प्रायः हर हप्ते कीटनाशी स्नान चलता रहता है।

मुझे याद है कि प्राचीन समय में जब समूचा समाज जातीय रोजगारों से जुड़ा था तो हमारे गांव में सब्जी उगाने का काम कुशवाहा समुदाय के लोग करते थे। किन्तु वह उन्ही स्थानों में बसते थे जहां नजदीक पानी और उपजाऊ जमीन हो। तब सब्जी उगाने हेतु एक परिवार के लिए एक बीघा जमीन ही पर्याप्त होती थी। उतने में ही वे सब्जी उगाकर बारहों मास अपनी अजीविका चला लेते थे। बेटे बेटियों के विवाह आदि भी कर लेते।लेकिन आधुनिक चमत्कारिक बीजों और यंत्रों ने समाज को अमीर एवं गरीब दो भागों में बांट दिया है। क्योकि लागत बढ़ जाने और उस अनुपात में लाभ न मिलने के कारण इस ब्यापार संस्कृति ने एक एकड़ वाले सब्जी उत्पादकों को गांव से निकाल शहरी मजदूर के लाइन में खड़ा कर दिया है।

चित्र में फलों से लदा एक मिर्च का पेड़ है जिसमें भरपूर फल लगे हैं।आप इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि जब इसमें कुदरती मिर्च से दश गुणा अधिक फल लगेंगे तो इसकी खेती की लागत कीट नाशक , निराई,तोड़ाई रसायनिक खाद आदि में तो लागत बढ़ जाएगी पर भाव दश गुणा नीचे उतर आएगा। परिणाम यह होगा कि सब्जी की खेती भी गेहूं धान की तरह बड़े उत्पादकों के हाथ में ही चली जायगी जो बड़े पैमाने पर यंत्र चलित खेती करें और मुनाफा कमाएं पर छोटों के बलबूते से बाहर।

लेकिन दूसरी ओर इस बीजत्व हीन फसल की लालच में न जाने कितने परम्परागत कुदरती किस्में नष्ट होजांयगी। क्योकि बीज ब्यापार भी परम्परागत के बजाय किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के हाथ में चला जायगा।

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